

आज बुंदेलखंड क्षेत्र के निवासियों को तंगहाली के दौर में जिस मनोदशा से गुजरना पड़ रहा है । उसको देखते हुए अंदेशा है कि यदि अधिक समय तक उन्हें कोई रास्ता नहीं मिला तो वे नक्सली रुख अपना सकते हैं। केंद्र तथा राज्य सरकारों के अलावा प्रकृति भी बुंदेलखंड वासियों का साथ नहीं दे रही है। पिछले पांच वर्षों से सूखा ग्रस्त इस क्षेत्र में इस वर्ष भी खेती की स्थिति दयनीय है। क्षेत्र में उद्योगों का अभाव है । लोगों की पलायन करने की दर बढती जा रही है। महानगरों में यहाँ के मजदूरों का बुरी तरह शोषण होता है किन्तु फिर भी भुखमरी से अपनी जान बचाने के लिए लगभग आधे लोग शहरों का रुख कर चुके हैं । लाख कोशिशों के बावजूद मजदूरों का पलायन नहीं रुक पा रहा है। बीते शनिवार झाँसी रेलवे स्टेशन पर केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री प्रदीप जैन ने भी बुंदेलखंड छोड़कर दिल्ली जा रहे कुछ ग्रामीणों को समझाया कि वे पलायन न करे , हम यही पर कुछ न कुछ व्यवस्था करेंगे किन्तु लोग नहीं मने। बल्कि इस पर टीकमगढ़ के एक मजदूर गोबिंददास ने जबाब दिया कि सरकार के भरोसे हम भूख से ही मर जायेंगे। कहने का मतलब सरकार पर से लोगों का भरोसा उठ चुका है।
गोबिंद दास जैसे मजदूरों के अलावा ऐसे लोग भी तंगी से गुजर रहे है जो कभी जमींदार हुआ करते थे। आज वे भी दो वक्त के भोजन के लिए संघर्षरत हैं। उनके बेरोजगार लड़के लड़कियां खाली बैठे हुए हैं ,परिणाम स्वरुप विवाह भी नहीं हो पा रहा है। निम्न वर्ग के लोग तो दिल्ली जाकर मजदूरी कर सकते हैं किन्तु यहाँ का उच्चवर्ग रूढीवादी होने के कारण भूखे रहते हुए भी चाहारदिवारी से बाहर जाने को तैयार नहीं। इसलिए ऐसे लोग अन्दर ही अन्दर घुट रहे हैं। रात रात भर जाग कर कभी सरकार को कोसते हैं तो कभी प्रकृति को। किन्तु पेट पलने का कोई रास्ता फ़िलहाल नहीं मिल पा रहा है। पिछले हफ्ते महिलाओं के बेचे जाने का मामला मीडिया में आया ,जिससे यहाँ की हकीकत देश के सामने आई।इस पर बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी के संयोजक संजय पाण्डेय का कहना है कि यदि ज्यादा समय तक प्रकृति का यही रुख रहा और सरकारों ने कोई कारगर कदम न उठाया तो यहाँ अराजकता का माहौल होगा, १०-२० रुपये के लिए छीना झपटी होगी। सरकारों की तरफ से बुरी तरह हताश हो चुके लोगों में अब आक्रोश उबाल लेने लगा है । दूर दूर तक उन्हें गुजारे का कोई रास्ता नहीं दिख रहा है,ऐसे में संभव है कि लोग नक्सलवाद की रह पकड़ लें।
गोबिंद दास जैसे मजदूरों के अलावा ऐसे लोग भी तंगी से गुजर रहे है जो कभी जमींदार हुआ करते थे। आज वे भी दो वक्त के भोजन के लिए संघर्षरत हैं। उनके बेरोजगार लड़के लड़कियां खाली बैठे हुए हैं ,परिणाम स्वरुप विवाह भी नहीं हो पा रहा है। निम्न वर्ग के लोग तो दिल्ली जाकर मजदूरी कर सकते हैं किन्तु यहाँ का उच्चवर्ग रूढीवादी होने के कारण भूखे रहते हुए भी चाहारदिवारी से बाहर जाने को तैयार नहीं। इसलिए ऐसे लोग अन्दर ही अन्दर घुट रहे हैं। रात रात भर जाग कर कभी सरकार को कोसते हैं तो कभी प्रकृति को। किन्तु पेट पलने का कोई रास्ता फ़िलहाल नहीं मिल पा रहा है। पिछले हफ्ते महिलाओं के बेचे जाने का मामला मीडिया में आया ,जिससे यहाँ की हकीकत देश के सामने आई।इस पर बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी के संयोजक संजय पाण्डेय का कहना है कि यदि ज्यादा समय तक प्रकृति का यही रुख रहा और सरकारों ने कोई कारगर कदम न उठाया तो यहाँ अराजकता का माहौल होगा, १०-२० रुपये के लिए छीना झपटी होगी। सरकारों की तरफ से बुरी तरह हताश हो चुके लोगों में अब आक्रोश उबाल लेने लगा है । दूर दूर तक उन्हें गुजारे का कोई रास्ता नहीं दिख रहा है,ऐसे में संभव है कि लोग नक्सलवाद की रह पकड़ लें।
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