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बुधवार, 9 सितंबर 2009

बुंदेलखंड मसले पर सरकारे स्पष्ट करें अपना रुख : संजय पाण्डेय

केन्द्र सरकार राजी, राज्य सरकारें भी राजी ,फ़िर देरी क्यों ?
केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों का प्रतिनिधितित्व करने वाले कई वरिष्ठ नेतागण जब बुंदेलखंड आते हैं तो वहां की जनता के बीच में तो पृथक बुंदेलखंड राज्य की खुली वकालत करते है किंतु वापस आते ही इस मुद्दे को भूल जाते हैं। बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी का आरोप है कि गुमराह करने का ऐसा ही क्रम पिछले 50 सालों से चल रहा है । वर्ष 1955 में फजल अली की अध्यक्षता में गठित हुए राज्य पुनर्गठन आयोग की पुरजोर शिफारिश के बावजूद आज तक बुंदेलखंड राज्य का गठन सम्भव नही हो सका। पिछले दो वर्षों से उप्र की मुखिया मायावती अपनी जनसभाओं और रैलियों में बुंदेलखंड राज्य निर्माण की तरफ़ दारी करती हैं किंतु जब इस आशय का विधेयक राज्य विधान सभा से पारित करवाने की बात आती है तो बहन जी पीछे हट जाती हैं । इसी तरह केन्द्र की यूपीए सरकार के प्रमुख नेता गण जिनमे डॉ मनमोहन सिंह तथा राहुल गाँधी स्वयं को पृथक बुंदेलखंड राज्य का हिमायती तो बताते हैं किंतु सरकार कोई संसदीय पहल नही कर रही। पार्टी संयोजक संजय पाण्डेय ने कहा कि ऐसे हालातों में यही निष्कर्ष निकलता है कि बुंदेलखंड मसले पर पूर्व की तरह सिर्फ़ बयान बाजी से काम चलाया जा रहा है। कहा कि यद्यपि राहुल गाँधी जी में बुंदेलखंड के प्रति कुछ करने की कसक है ,किंतु उनकी सोच का क्रियान्वयन भी तो जरूरी है। सोचने या बयान देने मात्र से बुंदेलखंड की समस्या का हल तो नही हो सकता।
मप्र तथा उप्र के बीच फंसे बुंदेलखंड क्षेत्र की चिर उपेक्षा का परिणाम है कि यह आज देश के सबसे पिछडे क्षेत्रों में से एक है। किंतु इसके पृथक राज्य बनने के बाद यहाँ केंद्रित विकास होने से स्थिति में सुधार आएगा । इसलिए सरकारें इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर हीला हवाली न करते हुए जल्द अपना रुख स्पष्ट करें । पाण्डेय ने बुंदेलखंड वासियों से भी पलायन और आत्महत्या का रास्ता छोड़ अपने अधिकारों के लिए क्रांति अख्तियार करने की अपील की।

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